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अयोध्या की सुनवाई में फाड़ा गया सबूत क्या कहता है

By सैयद फिरदौस अशरफ़
Last updated on: October 22, 2019 09:13 IST
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'अदालत के सामने यह मुद्दा नहीं है कि भगवान राम ऐतिहासिक व्यक्ति हैं या नहीं।'

'अदालत ने बार-बार पूछा कि क्या कोई व्यक्ति दस्तावेज़ों के आधार पर भगवान राम की वास्तविक जम्नभूमि को साबित कर सकता है।'

'मैंने दस्तावेज़ों के आधार पर इस चीज़ को दिखाया है। और ये दस्तावेज़ मेरे विश्वास की उपज नहीं हैं।'

The model of the proposed Ram temple in Ayodhya. Photograph: Mukesh Gupta/Reuters 

फोटो: अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर का नमूना। फोटोग्राफ: मुकेश गुप्ता/रियूटर्स

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पाँच-सदस्यीय बेंच के सामने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की सुनवाई ने बुधवार, अक्टूबर 16 को एक नाटकीय मोड़ ले लिया जब भारत के पूर्व इंडियन पुलिस सर्विस अधिकारी आचार्य किशोर कुणाल की लिखी हुई किताब को अखिल भारतीय हिंदू महासभा के वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने सुनवाई में पेश किया।

जब अयोध्या रीविज़िटेड  नाम की किताब में शामिल अयोध्या के भीतर भगवान राम की जन्मभूमि दिखाने वाले नक्शे को सबूत के तौर पर पेश किया गया, तो सुन्नी सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने बेंच से पूछा कि इस नक्शे का क्या किया जाना चाहिये, जिसके जवाब में बेंच ने उसे फाड़ देने के लिये कहा, जो राजीव ने किया, ऐसा प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया है।

तो भगवान राम  की जन्मभूमि के बारे में इस किताब में क्या सबूत थे? पूर्व IPS अधिकारी ने अपनी किताब में ऐसा क्या लिखा था, जो विवादास्पद था?

"विश्व हिंदू परिषद ने सबूत के तौर पर मेरे दस्तावेज़ को कभी स्वीकार नहीं किया। उनका कहना है कि बाबर ने राम मंदिर को गिराया और मैं ऐसा नहीं नहीं मानता," किशोर कुणाल ने सैयद फिरदौस अशरफ़/रिडिफ़.कॉम  को बताया।

आपकी किताब के किस हिस्से को सुप्रीम कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश किया गया था?

मैंने दो किताबें लिखी हैं, एक 2016 में और दूसरी 2018 में । एक किताब का नाम है अयोध्या रीविज़िटेड, जिसमें जस्टिस जी बी पटनाईक, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने प्रस्तावना लिखी है, और दूसरी किताब का नाम है अयोध्या बियॉन्ड अड्यूस्ड एविडेंस, जिसकी प्रस्तावना भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम एन वेंकटाचलैया ने लिखी है।

मैंने पहली किताब इतिहासकार के रूप में लिखी हैं। दूसरी किताब में मैंने उन मुद्दों को उठाया है, जो भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के सामने हैं। और दूसरे पक्ष के वरिष्ठ वकील (राजीव धवन) ने कार्रवाई रोकने के लिये अदालत के सामने सबूत फाड़ दिया।

ये किताबें अदालत में तीन महीने पहले जमा की गयी थीं।

लेकिन...

(बीच में काटते हुए) भारतीय सर्वोच्च न्यायालय पूछ रहा था कि क्या कोई भगवान राम की सही जन्मभूमि दिखा सकता है। दुनिया भर में अनुसंधान से परखे गये दस्तावेज़ों की मदद से मैंने अयोध्या में भगवान राम की सटीक जन्मभूमि को दर्शाया है।

जब अदालत ने इसकी अनुमति देदी, तो राजीव धवन ने इसे फाड़ दिया।

मेरी किताब और नक्शे को फाड़ दिया गया, क्योंकि यह एक सबूत था।

आप इस नतीजे पर कैसे पहुंचे कि भगवान राम का जन्म ठीक वहीं हुआ था, जहाँ बाबरी मस्जिद हुआ करती थी?

यह मेरी सोच या कल्पना या मेरी अटकलों पर आधारित नहीं है। मेरे पास छः काग़ज़ी सबूत हैं। पहला काग़ज़ी सबूत यह है कि सैयद मुहम्मद नामक व्यक्ति, जो बाबरी मस्जिद का खातिब और मुअज़्ज़िन था, ने 1858 में अयोध्या के SHO को पत्र लिखा था कि जन्मस्थान  नामक एक चिह्न पाया गया है। और इस स्थान की पूजा हिंदू हज़ारों सालों से करते आ रहे थे।

दूसरा दस्तावेज़ है जोसेफ टाइफेन्थेलर का शंसापत्र, जो 1745 में भारत आये, यहीं रहे और यहीं उनका देहांत हुआ। 1766 में उन्होंने अयोध्या का दौरा किया और इस विवादित धर्मस्थल पर उन्होंने ही सबसे पहले 1767 में लेख लिखा।  

उन्होंने बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर  के होने  के बारे में लिखा। उन्होंने लिखा है कि इस मंदिर को औरंगज़ेब ने गिरा दिया और हिंदू इस सच को भूले नहीं हैं।

लेकिन लोगों का मानना है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण मीर बाक़ी ने किया था, जो 1528 में बाबर के सेनापति थे।

जोसेफ टाइफेन्थेलर ने लिखा है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण औरंगज़ेब ने किया था। उन्होंने यह भी कहा है कि कुछ लोग मानते हैं इसे बाबर ने बनवाया था। मेरी थिसिस के अनुसार बाबर एक उदारपंथी शहंशाह था और किसी भी मंदिर को गिरवाने में उसका कोई हाथ नहीं था।

आप और किस सबूत की बात कर रहे थे?

राम मंदिर के लिये मेरा तीसरा सबूत यह है कि ऑक्सफर्ड युनिवर्सिटी और वडोदरा ओरिएंटल इंस्टिट्यूट लाइब्ररी और साथ ही बनारस हिंदू युनिवर्सिटी में अयोध्या की कुछ पांडुलिपियाँ रखी हुई हैं, जिनमें लिखा है कि राम जन्मस्थान सीता कुंज के उत्तर-पश्चिम में और सीता रसोई के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।

सीता कुंज आज भी है, लेकिन सीता रसोई को दिसंबर 6, 1992 को बाबरी मस्जिद के साथ गिरा दिया गया।

मेरा चौथा काग़ज़ी प्रमाण है फ्रांसिस बुचानन का राम जन्मस्थान का नक्शा, जो मुझे एक ब्रिटिश लाइब्ररी से 200 पाउंड की कीमत पर मिला। इसमें बताया गया है कि तीन गुंबदों के आगे राम जन्मस्थान स्थित है।

मेरा पाँचवाँ काग़ज़ी प्रमाण है ब्रिटिश पुरातत्वविज्ञानी पैट्रिक कार्नेजी द्वारा लिखा गया अयोध्या का सारांश, जिसमें राम जन्मस्थान का विवरण शामिल है। इसके बाद 1950 में शिव शंकर लाल नामक एक व्यक्ति ने उस जगह का नक्शा तैयार किया और फ़ैज़ाबाद कोर्ट में जमा किया।

इन छः दस्तावेज़ों के आधार पर मैंने साबित किया कि यही राम का जन्मस्थान है।

लेकिन मुसमलान पक्ष का कहना है कि राम जन्मभूमि पर विवाद 1949 में शुरू हुआ और यह विवाद वास्तव में हनुमान गढ़ी से जुड़ा हुआ था, जो बाबरी मस्जिद से दूर है।

न तो मुसलमान पक्ष और न ही हिंदू पक्ष ने इस मुद्दे पर ज़्यादा अनुसंधान किया है। मैंने काग़ज़ी दस्तावेज़ के साथ गहन अनुसंधान के बाद राम जन्मस्थान की जगह को साबित किया है।

अदालत के सामने यह मुद्दा नहीं है कि भगवान राम ऐतिहासिक व्यक्ति हैं या नहीं। अदालत ने बार-बार पूछा कि क्या कोई व्यक्ति दस्तावेज़ों के आधार पर भगवान राम की वास्तविक जन्मभूमि को साबित कर सकता है।

मैंने दस्तावेज़ों के आधार पर इसी बात को दिखाया है। और ये दस्तावेज़ मेरे विश्वास पर आधारित नहीं हैं।

लेकिन आपने इस सबूत को पेश करने में बहुत देर कर दी है।

विश्व हिंदू परिषद ने कभी मेरे काग़ज़ी प्रमाण या सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया। उनके पास यही परिकल्पना है कि बाबर ने राम मंदिर को गिराया और मैं इस बात को नहीं मानता।

बाबर एक बेहद उदारपंथी शासक था और उसकी उदारता को देश के संस्कृत पंडितों ने स्वीकार किया है। उसकी तुलना राजा हरीशचंद्र के साथ की गयी हैं। मेरे अनुसंधान के अनुसार, औरंगज़ेब ने राम मंदिर को गिराया और बाबरी मस्जिद बनवाया।

यह VHP की परिकल्पना के साथ मेल नहीं खाता, इसलिये उन्होंने मेरे इस अध्ययन को स्वीकार नहीं किया। अगर मैं VHP का वकील होता, तो यह मुद्दा बहुत पहले ही सामने आया होता।

फ़िदाई ख़ान, औरंगज़ेब के राज्यपाल ने 1660 में राम मंदिर को गिरवाया। इसे अलाहाबाद हाइ कोर्ट के सुधीर अगरवाल ने स्वीकार किया है।

मेरी दोनों ही किताबों में पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी बी पटनाईक और एम एन वेंकटाचलैया ने भी स्वीकार किया है कि राम मंदिर को औरंगज़ेब ने गिरवाया, बाबर ने नहीं। बाबर की इसमें कोई भूमिका नहीं थी।

तो फिर नाम बाबरी मस्जिद क्यों रखा गया? यह नाम कहाँ से आया?

1813-1814 में जब फ्रांसिस बुचानन ने अयोध्या का सर्वेक्षण किया था, तब उन्होंने लिखा कि हिंदुओं में सामान्य विश्वास व्याप्त है कि काशी, मथुरा और अयोध्या में उनके मंदिरों को औरंगज़ेब ने गिराया था।

उन्होंने लिखा है कि औरंगज़ेब ने राम मंदिर नहीं गिराया था, बल्कि पाँच पीढ़ी पहले बाबर ने उसे गिराया था। बुचानन एक छोटे अधिकारी थे और उनके लेख लोकप्रिय नहीं थे।

1838 में, एम मार्टिन ने दो अंकों में ईस्टर्न इंडिया नामक किताब लिखी। वह ब्रिटिश काल के जाने-माने इतिहासकार थे। जब मार्टिन ने अपनी किताब प्रकाशित की, तब उसे हू-ब-हू बुचानन के लेख जैसा पाया गया।

मुझे ब्रिटिश लाइब्ररी से बुचानन की वास्तविक प्रतिलिपि हासिल हुई और मैंने उसकी तुलना मार्टिन की किताब से की। मार्टिन ने बुचानन की रिपोर्ट के आधार पर लिखा था कि राम मंदिर बाबर ने गिरवाया था।

तब से ब्रिटिश जगत्‌ ने लिखना शुरू किया कि बाबर ने राम मंदिर को गिराया, और बाबर जैसे एक उदारपंथी शासक की छवि कलंकित हो गयी। 

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